डिलेवरी होने के कुछ समय बाद
डाक्टर या नर्स शिशु को आपके पास लाकर देंगे तब सबसे पहले घर का जो भी बड़ा हो शिशु
के कान में नवकार मंत्र या जो भी आपके धर्म का मूल मंत्र हो 5 बार धीरे धीरे सुनावे
तथा शिशु के ललाट (सिर) पर ऊँ अरहम सोने की अंगूठी या सोने की चीज से लिखे।
घर के बड़े सभी छोटे को शिशु
जन्म की बधार्इ दे। घर आकर छत पर बेलन से थाली बजावे। थाली चांदी, कासी, स्टील की जो
भी उपलब्ध हो बजावे। लड़का होने पर थाली बजाते है। शिशु की पहली घूटी बड़ो के हाथ से
दी जाती हे। आजकल डाक्टर घूटी देने से मना करते है। फिर भी शगुन के तौर पर शुद्ध गुड
या शहद शिशु के मुंह में चखा देवें। यदि घर
में बड़े न हो तो बच्चे के माता-पिता भी यह कार्य कर सकते है। अस्पताल में शिशु का
स्वागत नन्द, बहन, जेठानी या उस वक्त जो भी वहां हो उससे करवाते है। स्वागत करने के
लिये, एक थाली में फूल,
चावल, मेंहदी, मोली, पानी का कलश, कंघा, नारियल, हरी दूबा घास और एक लोटे में गरम पानी
रखे। फिर ननंद, बहन जो भी हो वह जचकी को तिलक करे, फिर शिशु को तिलक करें, दोनों के
हाथो में मोली बांधे, फिर आरती करें। नारियल पलंग के नीचे रखे। जब अस्पताल से घर आये
तो नारियल बदराकर वहीं बांट दें, मेंहदी नहावन के पहले लगावे।
दूसरा रिवाज आंचल खोलने का
है। चाहे लड़का हो या लड़की आंचल खोलने का रिवाज है। इस रिवाज में कंघा सात बार आंचल
पर फैरते हैं। जिससे दूध झरझराता हुआ आता है। फिर 4-5 हरी दूबा घास कच्चे दूध में भिगोकर
सात बार आंचल पर फेरते है। फिर गरम पानी से आंचल धोवे कपड़े भिगोकर खिल निकाले, फिर
शिशु को दूध पिलावे, मन में संकल्प करें इतना दूध आवे शिशु का पेट भर जावे।
पंडित जी से पूछकर सूरज पूजा
का मुर्हत निकलवाये। जिस दिन का मुर्हत निकाला है, उसके एक दिन पहले जचकी के नाखून
पर मेंहदी लगाते है। एक दिन पहले नीम के पत्ते, अजवाइन की पोटली और बास पत्ती को साथ
में उबाले। सुबह इसी पानी से माता एवं शिशु
को नहलाया जाता है, सुबह फिर से पानी गरम करें। पिठी- आटा, घी, हल्दी पानी मिलाकर बनार्इ
जाती है। शिशु को पहले नहलाये बाद में माता को नहलाये। बच्चे को गुलाबी या केसरी रंग
के कपड़े पहनावे। पानी में जो नीम पत्ती डाली थी उसे पानी से निकाल कर पटटे पर बिछाकर
और उस पर जचकी को बैठावे (सेक लगना चाहिये अजवाइन की)। जच्चा को नहलाकर फिर गुलाबी
साड़ी पहनावे। गीले बालो में शिशु को दूध न पिलावे जब बाल थोड़े सूख जावे तब बालो को
सूंघे फिर दूध पिलायें। ऐसा करने से शिशु को सर्दी नहीं लगती है।
सूरज पूजा के समय जच्चा को
पीले की साड़ी पहनावे, चूड़ी बदल दें, जेवर पहनावे। पूजा करवाते समय शिशु को गोद में
लेंवे। जचकी के पलंग को सूना न छोड़े किसी बच्चे को बैठाकर जावे, पलंग से उठते वक्त
देवर भाभी का पल्ला पकड़े और पूजा स्थान तक ले जावे। जचकी के पीले की साड़ी पीहर से
आती है और बच्चे के कपड़े भी वही से आते है। यदि कपड़े नहीं आये तो घर के ही कपड़े
पहनावे।
पूजा के बाद कपड़े पहले वाले
पहने, सिर में घी लगवाये, काय फल मांग में हर जगह भरे या पिपलामूल भरत है, मालीश वाली
से चोटी करवावे घी सिर में दबाकर।
आखा मूंग, धनिया, कुकु, चावल,
मोली, दिया, तेल, बाती, माचिस, पानी का कलश, नारियल, पान पत्ता, सुपारी, सात सुपारी
आटे के फल, दूबा (घास हरी), कोयले की आग, लकड़ी के दो पटे (एक पूजा की सामग्री के लिये,
एक जचकी के षेठने के लिये), आरती की थाली।
पूजा के पटे पर पानी का कलश
रखे, कलश के नीचे गेंहू रखे, कलश पर पान लगावे और उस पर नारियल रखे, पटे पर पान का
पत्ता रखकर उस पर सुपारी आटे के फल रखे और कुकु चावल लगावे, पटे के सामने जचकी को बैठावे।
उस पटे के नीचे चोका पुरावे, मतलब पटे पे शिशु को गोंद में लेकर जच्चा को पटे पर बैठावे,
शिशु का मुह ढककर रखे। पूजा के दिये की लौ और सूरज की रोशनी बच्चा देख न पावे, नहीं
तो सूरज की रोशनी से शिशु की आंखे खराब हो सकती है। यह पूजा ऐसी जगह रखे जहां सूरज
भगवान दिखे। सबसे पहले कलश पर साथियां करे, फिर पटे पर कुकु से चांद सूरज मांडे, घर पर जो खाना बना हो
लपसी, चावल पूड़ी एक थाली में भोग के लिये निकाले, साथ में जचकी को दी जाने वाली अजवाइन
भी निकाले। जो धूप (कोयले की आग) है उसमें भोग लगावे, फिर ननंद या बहन जचकी को और शिशु
को तिलक लगावे और मोली बाधे और आरती करे। पूजा होने के बाद पूजा के पटे के चारो और
चक्कर लगावे, और सूरज भगवान के हाथ जोड़े, वापस अपने पलंग पर आवे देवर भाभी का पल्ला
पकड़ कर पलंग तक लाता है। फिर पूजा की जगह जो थाली में भोग निकाला था उसको चावल में
मिलाकर गोले बनाकर जचकी के ऊपर से उतारकर चारों तरफ फेक दे पूजा की सामग्री गाय को
खिलावे।
नोट:- ऐसा इसलिये किया जाता है क्योंकि खुले में पूजा की
जाती है तो जचकी को नजर न लगे और कोर्इ तकलीफ न होवे। उस वक्त सबको वहां से हटा दिया
जाता है सिर्फ जचकी शिशु और (नावन मां) वहां रहे। पल्ला पकड़ने वाले को अपना इच्छानुसार
नेग दिया जाता है। महिलायें जच्चा बच्चा के गीत गाती हैं।
जैसे:- दांर्इ, अजवाइन, सूजर,
झूला, बधार्इ, पिपली, घूटी, झबला, टोपी, आदि गीत गाये जाते हैं।
पंडित जी से पूछकर जलवे का
मुहर्त निकालते है। मुहर्त के एक दिन पहले जचकी के हाथ पाव में मेंहदी मड़वाते है।
जलवा वाले दिन जचकी और शिशु को नीम या गरम पानी से नहलाते है। पहले शिशु को नहलाकर
गुलाबी या पीले रंग के कपड़े पहनाते हैं। जचकी खुले बाल रखे (चोटी न करे)। अच्छी साड़ी
पहनकर तैयार होये। पीले की साड़ी ओढ़कर गाजे बाजे से शिशु को लेकर मंदिर जाये, औरते
स्तवन गाते हुये मंदिर ले जाती है। जच्चा जब शिशु को लेकर मंदिर पहली बार जाती है तो
उसे देवांगना कहते है। मंदिर में जच्चा के हाथ से चावल से गवली या स्वस्तिक बनवाये,
प्रसाद चढ़ावे, जचकी के हाथ में गीला कंकू लगाकर पटटे पर छापा दिलवाये, फिर घर आकर
सास, काकी सास, जेठानी, नन्द, देवरानी इनमें से जो भी हाजिर होवे तो जचकी की चोटी करे।
फिर जचकी इच्छानुसार नेग देवे। उसके बाद जच्चा को बोर या बिंदिया लगाये। पीले की साड़ी
पहनाकर या ऊपर से ओढ़कर पानी का कलश हाथ में लेकर कुआ पूजने जाते है। जाते समय शिशु
को घर में ही बड़ो के पास छोड़कर जावे।
कुआ पूजने की सामग्री: गुड़,
पान, सुपारी, कंकू चावल, आटे के फल (सात), मोली, आखा मूंग, धना ,गेंहू, चना, गेंहू
उबालकर गुगरी बनावे, एक ब्लाउज पीस, पानी का कलश आदि।
पूजा की विधि - कुंआ की पाल
(मुडरे) पर पूजा की जाती है। जच्चा कुये की पाल पर चांद, सूरज, स्वासितक या ओम (ऊँ)
बनाये और फल, आखा मूंग, धना चढांकर हाथ जोड़े।
फिर ब्लाउज पीस या इच्छानुसार रूपये चढ़ावे, कलश के पानी में दो बूंद दूध की निकालकर
डाले और कलश का पानी कुआ में डाले और बोले जैसे कुंये की झिर बढ़ती है, वैसे ही मेरा
दूध बढ़े। ऐसी प्रार्थना करे, फिर घर लौट आये घर के दरवाजे पर जच्चा सिर पर कलश लेकर
खडी रहे, फिर देवर जेठुता कोर्इ भी सर से कलश उतारे, ननद आरती करे और फिर जच्चा को
घर के अंदर लाए, जचकी के ऊपर से रार्इ नमक उतारे और चारो ओर कोनो में फैके। कलश उतारने
व आरती का नेक अपनी इच्छानुसार देवे। घर के देवी देवताओं के नारियल बंघारे, जच्चा फिर
घर के बड़ों के पाँव (पगे) पड़े।
कुवा पूजन जाते जचकी ने जो
पीले रंग की साड़ी ओढ़ रखी थी उसी में चार बच्चे चारो कोने पकड़कर बीच में बुआ शिशु
को हाथ में रखकर झूला झुलाती है और थोड़ा सा मुग, 1 रू. चावल झोली में डालती है। फिर
बच्चे को गोंद में लेकर शिशु के कान में नाम बोलती है।
इस रिवाज के अन्तर्गत जचकी
किसी रिश्तेदार के यहां खाना खाने जाती है। यदि कोर्इ नहीं बुलावे या कोर्इ रिश्तेदार
नहीं होवे तो घर में ही गुड का चुरमा बनाकर खिलावे जिसके घर में मुहं ऐठने जावे उसके
पाव पड़कर रूपये देवे। सामने वाला भी जच्चा बच्चा दोनों को उपहार देता है। खाने में
गुड का चुरमा जरूर बनावे बाकी सादा भोजन कुछ भी बना सकते है।
नोट: जलवा पहले पक्ष में पूजते
हैं। तीसरे पक्ष में नहीं पूजते हैं। जैसे- 1 महीने में 2 पक्ष होते है। 15 दिन का
एक पक्ष होता है, अगर ग्यारस पूनम के बीच डिलेवरी होती है तो पांच दिन इस पक्ष के और
15 दिन दूसरे पक्ष के इस तरह 20 दिन होते हैं। इस बीच जलवा पूजते है। अगर इस समय नहीं
पूजे जलवा तो सवा महिने बाद पूजन करें मुहरत दिखाकर 11 दिन 27 दिन या 31 दिन एक दिन
में पूजते हैं।
This is great! very helpful for people who are away from India
ReplyDeleteatulya bharat
DeleteLot of thanks.. Apke is sanskar lekh se Bahut si bahino ko help milegi.... Apka bhut bhut dhanyavad
ReplyDelete