Sunday, January 25, 2015

शिशुओं का पालन पोषण करने के लिए निम्न बातो पर विशेष ध्यान दे



1.   बच्चे को दूध पिलाना एक कला है
2.   स्तनपान का महत्व
3.   दूध पिलाते वक्त की स्थिति
4.   जन्म से तीन माह तक
5.   चौथे महीने से छठे महीने तक
6.   सातवें महीने से एक साल तक
7.   एक वर्ष से तीन वर्ष तक
बच्चे को दूध पिलाना एक कला है-

इसका भी तरीका सिखना चाहिए, दूध पिलाने के 15-20 मिनट पहले 2 गिलास पानी या जो भी इच्छा हो, शरबत वगैरा पियें फिर दूध पिलायें। आराम से, बिस्तर पर या जमीन पर बैठकर पिलायें, लेटकर पिलाना गलत है। आपरेशन या किसी अन्य कारण से अगर बैठने में दिक्कत है तो जब संभव हो सके बेढ़कर पिलायें।
पालथी मार कर या घुटना टेढा करके शिशु को पाव पर रखे, सिर के नीचे 1 हाथ रखें, हाथ से बिटनी पकड़े, अंगूठे उंगली के बीच में पकड़कर शिशु के मुंह में दें। काला हिस्सा शिशु के मुंह में रहना चाहिये। शिशु की नाक नहीं दबानी चाहिये, बच्चे के मुंह के पास बिटनी लगावे अपने आप मुह खोलेगा।
नव जात शिशु को दूध की आवश्यकता कम होती है। 3 दिन माता को दूध कम आता है।

स्तनपान का महत्व

गर्भवस्था के बाद स्तन पान एक बहुत ही महत्वपूर्ण चीज है। जो माँ और शिशु को करीब लाता है। यह एक ऐसा समय है, जिस वक्त माँ और शिशु एक दूजे को जानते हैं और इसके जरिये दोनों एक दूसरे से अपनी भावनायें व्यक्त करते हैं। स्तन पान एक ऐसी शुरूआत है जो शिशु की खाने की आदत स्थापित करता है। शोधकर्ताओं ने भी शोध में पाया है कि शिशु अपनी खाने की इच्छा अलग-अलग तरीके से जैसे कि हसंकर, रोकर, अपना मुंह खोलकर जताते है।

नवजात शिशु का संपूर्ण विकास माता के दूध में मौजूद पोषक तत्वों की परिपूर्णता पर निर्भर है। यदि इस दौरान मां संतुलित एवं पौषिटक आहार का सेवन करती है तो यह पोषक तत्व मां के दूध द्वारा नवजात शिशु के संपूर्ण विकास में सहायक होता है। स्तन पान कराने से माँ को ब्रेस्ट केंसर होने की संभावना कम रहती है।

दूध में वृद्धि के लिए मूंगदाल, दलिया, पटोलिया, खिचडी, गाजर, प्याज, जीरा, सौंफ, लहसुन ,फलों में पपीता, एप्पल खा सकते हैं। जीरा, मेथी सेककर और पीसकर पाव चमच्च दूध में लेवे, इससे भी दूध बढ़ता है। सब एक साथ नहीं लें। अगर इन चीजों से भी न बढ़े तो डाक्टर से पूछें।

दूध पिलाते वक्त की स्तिथि

शिशु की गर्दन को हाथ से सहारा देवे, सर और गर्दन सीधी रखे। शिशु का शरीर माँ के बिल्कुल करीब लाकर अपने आंचल के सामने रखें। दूध बढाने के लिये मन में र्इश्वर से प्रार्थना करें, आपकी कामना पूर्णं करेगा। शिशु जितना पियेगा दूध उतना बढ़ता जायेगा।

जन्म से तीन माह तक

बच्चे के जन्म के बाद जितनी जल्दी हो एक दो घण्टे बाद से ही उसे मां का दूध पिलाना चाहिये, बच्चे के लिये मां का पहला दूध कोलोस्टम उसे जीवनदायिनी शक्ति  देता है और उसमें पाये जाने वाला तत्व पौष्टिकता  देने के अतिरिक्त बच्चे को कर्इ रोगों तथा रोग संक्रमण से बचाते है। शिशु को पहले दिन से ही एक घंटे के अंदर से जब भी बच्चा रोये स्तन पान कराएं,  मां का दूध पिलाना सर्वोत्तम है। 4-5 महीने तक बच्चे को  पानी की आवश्यकता नहीं होती है। मां का दूध ही संपूर्ण आहार है। फिर भी उस समय पानी पिलाने में कोर्इ नुकसान नहीं है। प्रारंभ में बच्चा दो तीन महिने दूध पीकर उल्टी कर देता है तो कोर्इ घबराने की बात नहीं है। जब तक बच्चा मां का दूध पीता है तब तक दूध को पचाने के लिये किसी घुटी या ग्राइपवाटर की जरूरत नहीं है। जब तक बच्चा मां का दूध पीये तब तक मां को चाहिए कि वह खाने के बाद पानी देर से पिये, बलिक बच्चे को दूध पिलाने के पन्द्रह मिनट पहले एक गिलास पानी पी ले, फिर स्तन पान कराये। माँ को सदैव प्रसन्नचित होकर और समय से (प्राय दो  घंटे के अन्तराल से) ही शिशु को दूध पिलाना चाहिए। गुस्से या मानसिक तनाव से स्तन पान नहीं कराये, नहाकर या सिर धोकर भी तुरंत दूध न पिलाये, दूध पिलाने के बाद शिशु को अपने कंघे से चिपकाकर गोंद में ले और धीरे-धीरे उसकी पीठ सहलाये इससे उसके पेट की हवा डकार बनकर निकल जायेगी। और बच्चा हल्का महससू करेगा तथा अपच से भी बचाव होगा।

चौथे महीने से छठे महीने तक

1.   चौथे महीने से छठे महीने तक स्तन पान जारी रखे चौथे महीने से एक बादाम 1 खारक घीसकर चटावे 1 साल तक
2.   नित्य प्रात: 9-10 बजे खारक और रात में भिगोर्इ एक बादाम को पत्तथर पर चन्दन की तरह घिसकर धीरे-धीरे साफ उंगली से चटा दे इससे बच्चे का दिल दिमाग अच्दा बनेगा और प्रसन्न चित रहेगा।
3.   तीन महीने के बच्चे को शुरू में दिन में तीन मिनट उल्टा जरूर लेटाये उसके बाद जैसे बच्चा बड़ा होता है उसी के अनुसार उल्टा लिटाने का समय ज्यादा बढ़ाते जाये। इससे आपके बच्चे की छाती चौड़ी होगी और पाचन शक्ति बढ़ेगी व बच्चे के पेट में कोर्इ तकलीफ  नहीं होगी।
4.   बच्चे को नहलाने से पहले हर रोज या कम से कम एक दो बार सरसो की या जेतुन के तेल की मालिश करें इससे शिशु गोरे और शक्ति शाली होते है। डालडा घी की मालीस करें, रंग गोरा होता है। सुबह 1 बार रोज नहलावे मौसम देखकर।
5.   जन्म के समय शिशु का औसत वजन लगभग 2½ किलो होता है व चार माह के बच्चे का चार मास समाप्त होने पर जन्म से दुगना 5 किलो के आसपास होना चाहिये और साल भर के बच्चे का वजन कम से कम जन्म से तिगुना या 7½ किलो के आस पास होना चाहिये।

सातवें महीने से एक साल तक
1.   छ: माह के बाद माँ के दूध के अलावा अतिरिक्त भोजन की जरूरत होती है। क्योंकि केवल माँ का दूध बढ़ रहे बच्चे के लिये पर्याप्त नहीं रहता है। अत: माँ के दूध के साथ-साथ जब खाना दे तो पका केला मसल कर देना सर्वोत्तम होगा इसमें इलाइची के 2-3 दाने का चूर्णं मिलाकर दे। चीकू मसल कर चटावे।
2.   माँ के दूध के साथ-साथ स्वस्थ्य गाय का या डब्बे का दूध प्रारंभ किया जा सकता है। जो भी दे यदि उसके प्रयोग से बच्चे को कोर्इ हानि मालूम हो तो उसमें समभाग पानी मिलकार तैयार दूध को बच्चे को दे। धीरे धीरे पानी की मात्रा को कम करते जाये इससे दूध हल्का और सुपाच्च हो जाता है। दूध में सोंफ या बायबिडिंग 6-10 दाने डालकर उबाले। अजवान के 10 दाने डालकर उबाले पिसी पिपल की 1 चुटकी दूध के अधन से डाले पिलावे छानकर।
3.   बच्चे को दूध बोतल से न देकर कटोरी चम्मच की सहायता से पिलाना चाहिये। अगर किसी मजबूरी वश बोतल से दूध देना आवश्यक हो तो बोतल को साफ करके उसको उबाले जरूर, उबली हुर्इ बोतल होना अति आवश्यक है। आवश्यक हो तो उपर का दूध छ: मास से पहले भी दिया जा सकता है।
4.   बच्चे को दूध में जौ का पानी थोड़ा डालकर पिला सकते है।
जौ का पानी बनाना:- आधा लीटर पानी में 10 ग्राम जौ के दाने, बार्ली के दाने (औषधि के रूप में केमिस्ट से प्राप्त होगी) डालकर उबाले, दो तीन उबाल आने पर बर्तन को नीचे उतार कर छान ले, इस जौ के पानी को दूध में मिलाने से दूध अधिक पौषिटक बन जाता है और बच्चा पेट दर्द से बच जाता है।
5.   माँ के दूध के साथ-साथ फलो का रस, हरी सब्जियों के सूप आदि दे। अद्र्ध नागली का पावडर, आहार जैसे-चावल, पतली खीर, आलू, पतली खिचड़ी आदि देना शुरू करें। गाजर, आलू को उबालकर खूब मसल कर दे। केला दूध में फेटकर, पटोलिया आदि भी दे सकते है। छ मास से दांत आना चालू हो जाते हैं, नवमें मास में कुछ दात भी निकल आते है। तो धीरे धीरे थोड़ा ठोस आहार दें। जैसे खिचड़ी, दलियां नमक डालकर, बिना मसाले की दाल, सब्जिया, दाल चावल, छाछ, दही, सूजी इटली, बिना मसाले की दाल में रोटी बारीक चूर कर। पहले कम मात्रा में खिलाएं और धीरे धीरे उम्र और बच्चे की भूख के अनुसार खाने की मात्रा बढाते जाये तथा दिन में दो तीन बार खाने को दे। धीरे धीरे फल जैसे केला,  चीकू, पपीता आदि छोटे-छोटे तुकड़ों में काटकर दें, ताकि बच्चा कुछ चबाकर खा सके। धीरे धीरे बड़े बिस्कुट गाजर आदि पकड़कर खाने को दे पर ध्यान रखे कि बच्चे का आहार ऐसा न हो जो गले में अटक जाये कुछ-कुछ आहार मिक्सी में पिसकर दे सकते हैं।

एक वर्ष से तीन वर्ष तक-

एक वर्ष से 3 वर्ष की आयु में बच्चों को संतुलित आहार देना बहुत ही आवश्यक है। शुरू के दो वर्ष में बच्चा जितनी तेजी से बढ़ता है बाद के वर्षो में उसकी बढ़त उतनी नहीं होती इसलिये उसकी भूख अपेक्षाकृत कम हो जाती है। चौके नहीं चार माह के बच्चे को शुरू में 24 घंटे में 200 एम.एल. दूध देते है। फिर एक साल के बच्चे को वजन के अनुपात में धीरे धीरे मात्रा बढाकर एक लीटर तक दी जा सकती है। पनीर बनाकर से देते है। पन्द्रह मास की आयु हो जाने पर बच्चे को परिवार के अन्य सदस्यों की भांति दाल चावल, चपातियां, दूध और दूध से बने पदार्थ, सब्जिया, फल आदि दिये जा सकते हैं।

2-3 साल का शिशु होवे और दूध छुड़वाना हो तो काला बोल लगाते है। दूध ही बंद करना हो तो पत्ता गोभी को गरम करके 1 पत्ता घी लगाकर दोनों तरफ बांधे, 10-15 दिन रोज, उससे दूध कम होता है या फिर डाक्टर से गोली लेवे बंद करने की।

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