यदि नर और नारी, माता पिता
की भूमिका में पहुंचने के पहले, इन सभी बातों को समझ लें स्वीकार कर ले, तो निश्चित
रूप से जो आनंद सिद्धार्थ राजा व माता त्रिशला को प्राप्त हुआ, उसी परम सुखद अनुभूति
हर माता-पिता कर सकते हैं। आने वाली संतान को भी उसी दिव्यत्व का साक्षातकार हो सकता
है। उसके सारे दुष्कर्म क्षीण नहीं पर जीर्ण जरूर बन सकते हैं। इसलिए गर्भधारण के पहले
ही माता पिता बस वासना के आवेश में नहीं बहते हुये अपनी भावात्मक तैयारी करें। गर्भ
धारण करने के पश्चात माता पिता अपना एक एक कदम सावधानी पूर्वक उठाएं उनकी उर्जाए उनके
जीवन की शैली अब उन तक सीमित नहीं, उसका बहुत गहरा असर संतति पर होने वाला है, जैसा
माता पिता का व्यवहार होगा, जैसे संबंध होगे, वैसे ही गर्भस्थ जीव का उनके साथ और पूर्ण
जगत के साथ संबंध होगा। श्रद्धा भाव का अनुभव, समूचे विश्व को देने में जीव समर्थ होगा।
भगवंत सामथ्र्य से संपन्न है,
हमारा कोर्इ भी नेगेटिव वाइब्रेशन, नकारात्मक शक्ति इस जीव तक न पहुंचे हम जैसी संतान
चाहते हैं, वैसे हम पहले बने, हम जैसे होंगे संतान भी वैसी ही होगी, इसलिए आहार विचार
में संयम बरते अति उष्ण, अति शीतल, आहार सात्विक हो, पौष्टिक हो, प्रसन्न मन से उसको
ग्रहण करें। अति तीखा, कडवा, बासी, बाजार की बनी
वस्तू न वापरे। नो महिने से जब तक शिशु
को माता अपना दूध पिलाये, तब तक ऐसी चिजो का उपयोग न करें।
टीवी पिक्चर के पर्दे से दूर,
हमारी आखे बनी हुर्इ है, शिशु की आखे बन रही है। बनते समय आंखो पर स्ट्रेस बहुत खतरनाक
होता है।
जैसी भावना, हमारी होगी, वैसी
ही भावना उस जीव की होगी। अच्छा व्यवहार करेगा तो आप खुश होंगे, आपके स्वप्न साकार
होंगे।
नो महिने की साधना सही तरीके
से करोगे आने वाला जीव भगवंत स्वरूप बन जायेगा।
उदाहरण:- एक बच्चे के माता पिता बहूत परेशान थे, वो गुरू के
पास आये और बताया - बच्चा जब कोर्इ चिज मांगता है, और देने में देरी होती है तो सिर
पटकना शुरू कर देता है। माता ने कहा गुरूदेव इसके लिए उपाय बताएं, कब इस समस्या का
हल होगा। गुरु ने पूछा, शिशु गर्भ में था तब तुम क्या करती थी। माता ने स्पष्ट शब्दों
में कहा - "मैंने तो ऐसा कुछ नहीं किया"। परन्तु गुरूदेव इसके पिता जब भी
उदवेग में होते, तो दिवाल पर सर पटकते थे। वही से ये चरित्र शुरू हुआ था, पिता के ही
आचार विचार व्यवहार का असर शिशु ने ग्रहण किया। उसका उपाय गुरु ने बताया की माता पिता
धार्मिक क्रिया करें, प्रतिक्रमण करें, प्रायश्चित से बालक ने सिर पटकना बन्द किया।
इसलिए माता पिता सजग रहे, तनाव पूर्ण व्यवहार, क्रोध, अविश्वास, संघर्ष शिशु गर्भ में
रहे तब नहीं करे। आपस में पति पत्नी प्रेम पूर्वक व्यवहार करें। अच्छी बातों का अच्छा
असर होगा।
सुबह के वक़्त मेडीटेशन करें।
मेडीटेशन दिमाग को शांत रखता है, दिमाग की नकारात्मक सोच और विचारों को खत्म करता है।
अच्छे विचारों को स्थान देता है। गर्भावस्था में कभी कभी फुल टाइम थोड़ा क्रिटिकल हो
जाता है, आशावान बने रहे, जो होगा बहुत अच्छा होगा। ऐसी सोच हमें कठिन से कठिन परिस्थिति
से भी बहुत आसानी से बाहर निकाल देती है। आपकी यही सोच बच्चे पर सही सकारात्मक प्रभाव
डालेगी।
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