मातृत्व हर महिला की चाह
जब से स्त्री को गर्भवती होने
का पता चलता है वह एक विशिष्ट आनंद व पूर्ण संतोष की भावना से प्रफुल्लित हो जाती है।
शिशु का जन्म उसके जीवन में आनंद की घटना है। प्रेम अपनापन और एक नर्इ खोज की भावना
मन में उमंग पैदा करती है। माता की कोख में पुत्र है या पुत्री इससे माता को कोर्इ
मतलब नहीं होता वह तो बस इतना जानती है कि वह मेरा अंश, मेरी संतान है। यही सोचकर खुश
रहती है, नौ महीने गर्भ में रखती है। कर्इ को पूरे नौ महीने तक तकलीफो से गुजरना पड़ता
है और कर्इ भाग्यशाली होती हैं, जिन्हे पूरे नौ महीने कोई परेशानी नहीं होती।
एक जीव का दूसरे जीव में पलना
इतना आसान नहीं होता, यह वरदान र्इश्वर ने बस स्त्री जाति को दिया है। स्व शरीर से
नये शरीर का निर्माण स्त्री को सुखद अहसास से भर देता है। शिशु को जन्म देते समय, स्त्री
को पीड़ा सहनी पड़ती है। परंतु बच्चे के जन्म के बाद बच्चे की किलकारी सुनकर अपनी पीड़ा
भूल जाती है, बच्चे को देखकर मुस्कुरा देती है। “मुझे जल्दी दिखाओ” ये शब्द निकलते
है।
माता से बढ़कर शिशु के लिये
इस दुनिया में कोर्इ नहीं है। र्इश्वर हर जगह बच्चे को नहीं संभाल सकता इसलिये मां
बनार्इ। कितनी तकलीफ सहन करके शिशु को बड़ा करती है। खुद गीले में सोती शिशु को सूखे
में सुलाती, परेशानी में रात भर जगती,यह है
माता का प्यार जो अपने जीवन का खतरा सहकर परिवार में खुशियां भर देती हैं। माँ एक शिशु को जन्म देकर नया जीवन पाती है।
No comments:
Post a Comment