आजकल लड़कियां समझती नहीं सिर्फ
बोलती है की हमको अलग बैठने में शर्म आती है। सत्य यह है की इन दिनों में स्त्री की
नसे खुलती हैं, जल्दी चलना, दौडना इस समय ठीक नहीं रहता। अलग बैठोगी तो आप बचाव कर
सकोगी, नहीं तो यह ही चलता रेहगा की काम करना, यह काम कर लू, वह काम कर लू आप आराम
नहीं कर सकोगी। इन दिनो में परिस्थिति नाजुक हो जाती है। शरीर की हिफाजत अलग बैठने
से होगी, तीन दिन बाद महावारी गिरना कम हो जाएगी, जो काम करना तीन दिन बाद करें।
आज कल तो अलग रहते हैं, सब
करना पड़ता है,फिर भी कोशिश करके इन बातों
का ध्यान रखना चाइये - नृत्य न करें, रस्सी
नहीं कूदे, दौड़े नहीं और भी नहीं करने लायक काम नहीं करें। आपके शरीर को तकलीफ न होने
पाये।
धार्मिक दृष्टि से भी अलग बैठने
का नियम है। मंदिरो में नहीं जाएं जब तक अपने पास अशुद्धी रहे। साफ होने पर जाये, सामयिक
माला, धार्मिक काम नहीं करे। दोष लगता है, कर्म बंधन होता है।
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