नवजात शिशु को पीलिया होना
आम बात है। किसी शिशु को होता है किसी को नहीं, इससे घबरना नहीं चाहिये सावधानी जरूर
रखना चाहिये।
कर्इ शिशुओं का लिवर पहले हफ्ते
में देरी से काम चालू करता है। जिससे उनके रक्त में बिलरूबिन नामक पीले रंग का तत्व
इकटठा हो जाता है। इसी कारण बच्चे को पीलिया हो जाता है। बच्चे के लीवर में एक एन्जाम
पीलिया को कम करता है। जिन बच्चों में इन्जाइम की मात्रा कम होती है। उन्हें पीलिया
होने की आशंका बढ़ जाती है। जन्म के 2-3 दिन से पीलिया के लक्षण प्रकट होते है।
5-6 दिन में प्रकोप बढ जाता है। 15-14 दिनो में ठीक होने लगता है। दरअसल कुछ समय बाद
लीवर जब काम करने लगता है, बिलरूबिन बाहर निकल
कर जानडिस खुद ही ठीक हो जाता है। इसे फिजियोलाजिकल कहते हैं।
सावधानियां:- भले पीलिया अधिकांश
नवजात शिशुओं को विशेष उपचार की जरूरत नहीं पड़ती है, परन्तु शिशु रोग विशेषज्ञ को
दिखाना जरूरी हैं। कभी-कभी कुछ और कारण भी हो सकते हैं, लापरवाही करने से शिशु का जीवन
खतरे में पड़ सकता है। कभी- कभी फिजियोलाजिकल जानडिस खतरनाक रूपधारण करता है। इस स्थिति में माता और शिशु दोनों का उपचार जरूरी हो जाता
है। अगर माता का ब्रल्ड ग्रुप निगेटिव हो और बच्चे का ब्रल्डग्रुप पॉजिटिव हो तो नवजात
के जन्म के 24 घण्टे के भीतर या 72 घंटे के बाद यह खतरनाक हो सकता है। इसी लिए डॉक्टर को दिखाना जरुरी
है। बच्चे के मूत्र पर ध्यान देना चाहिए, गाढे पीले रंग का हो और मल सफेद रंग का हो
तुरंत डाक्टर को इसकी जानकारी दें।
बच्चे के पेट, जांघ, तलुओ या
शरीर में अन्य जगह पीले निशान दिखाई पड़े तो डाक्टर को तुरंत दिखावे।
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